मुक्त-ग़ज़ल : 245 - धूप क्या होती है
एक पतला जानकार पापड़ तला वो
॥
बिन हथौड़ा तोड़ने मुझको चला
वो ॥
धूप क्या होती है दुख की , क्यों वो जाने ?
सुख के साये में हमेशा ही पला
वो ॥
फूँककर पीता है गर जो छाछ को
भी ,
दूध का होगा यक़ीनन इक जला वो
॥
है नहीं मँगता मगर जब जब भी
आया ,
दर से मेरे कुछ लिये बिन कब
टला वो ॥
जो मुकर जाता है अपनी बात से
फिर ,
आदमी तो है मगर इक दोग़ला वो
॥
आज के हालात ने ही उसको बदला
,
कल तलक इंसान था इक सच भला
वो ॥
राधिका
उसको मिली कैसे हूँ हैराँ ?
जबकि रत्ती भर नहीं है साँवला
वो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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