ना दवा ,दारू न जहराब ही पिया हमने ॥
ज़ख्म बढ़ता रहा फिर भी नहीं
सिया हमने ॥
इतने भूखे रहे इतने कि जब
मिला पानी ,
हमने रोटी सा चबाया नहीं
पिया हमने ॥
उसने वो बेच डाला अपने फ़ायदे
भर को ,
बेचकर ख़ुद को जो तोहफ़ा उसे
दिया हमने ॥
फ़ौज में आए हैं बस रोज़गार
की ख़ातिर ,
ठेका मरने का वतन पे नहीं
लिया हमने ॥
कल जो हमने किया था एक काम
अच्छा ही ,
आज लगता है वो अच्छा नहीं
किया हमने ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
No comments:
Post a Comment