मुक्त-मुक्तक : 691 - बेशक़ दिखते नहीं पीठ पर.........
बेशक़
दिखते नहीं पीठ पर
फर-फर लगे हुए ॥
फर-फर लगे हुए ॥
शायद नहीं यक़ीनन गहरे
अंदर लगे हुए ॥
अंदर लगे हुए ॥
जाने क्यों ? लेकिन लगते
मुझको हर लँगड़े में ,
मुझको हर लँगड़े में ,
एक साथ लाखों सुर्ख़ाबों
के पर लगे हुए ॥
के पर लगे हुए ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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