*मुक्त-मुक्तक : 705 - ग़म बड़े मिले ॥
बैठे कहीं , कहीं - कहीं खड़े-खड़े मिले ॥ कुछ ख़ुद ख़रीदे कुछ नसीब
में जड़े मिले ॥ तिल-राई ज़िंदगी में ताड़ औ’ पहाड़ से , हँस-रो के ढोने दिल के
सर को ग़म बड़े मिले ॥ -डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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