पड़ा रहता है दलदल में न डूबा
ना धँसा करता ॥
वो मकड़ी की तरह जालों में रहकर
ना फँसा करता ॥
लतीफ़ागोई करके भी मेरी आँखें
भर आती हैं ,
वो अपनी दास्ताने ग़म सुनाकर भी
हँसा करता ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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