सारे कंकड़ वो बेशक़ीमती
नगीने सा ॥
सब ही पतझड़ वही बसंत
के महीने सा ॥
दुनिया गर एक खौफ़नाक
दरिया तूफ़ानी ,
वो,लगाता
जो पार लगता उस सफ़ीने सा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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