*मुक्त-मुक्तक : 456 - हिमाक़त ऐसी तनहाई में................
हिमाक़त ऐसी तनहाई में
बारंबार कर बैठो ॥
मेरा तब सिर से लेकर
पैर तक दीदार कर बैठो ॥
कभी मैं हुस्न जब भी
बेख़बर सो जाऊँ बेपर्दा ,
तुम आकर इश्क़ फ़ौरन
बेइजाज़त प्यार कर बैठो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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