*मुक्त-मुक्तक : 419 - कार सा जीवन था मेरा..................
कार सा जीवन था मेरा
बैल गाड़ी हो गया ॥
मुझसे खरगोशों से कछुआ
भी अगाड़ी हो गया ॥
भी अगाड़ी हो गया ॥
हर कोई आतुर है मुझसे
जानने पर क्या कहूँ ?
जानने पर क्या कहूँ ?
बाँटने वाले से मैं
कैसे कबाड़ी हो गया ?
कैसे कबाड़ी हो गया ?
- डॉ. हीरालाल प्रजापति
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