*मुक्त-मुक्तक : 365 - दीवान था लाज़िम.....................
दीवान था लाज़िम तुम्हें
मैं सिर्फ़ शे’र था ॥
मैं सिर्फ़ शे’र था ॥
तालिब गुलाब के थे
तुम
मैं बस कनेर था ॥
मैं बस कनेर था ॥
फ़िर भी तुम्हारे दिल
पे की
बेख़ार-हुक़ूमत ,
बेख़ार-हुक़ूमत ,
बेशक़ ये सब नसीब का
ही हेर-फेर था ॥
ही हेर-फेर था ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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