मैंने नापा है निगाहों में
उसकी अपना क़द ॥
उसकी अपना क़द ॥
एक बिरवे से हो चुका वो
ताड़ सा बरगद ॥
ताड़ सा बरगद ॥
वो तो कब से मुझे
मंजिल बनाए बैठा है ,
मंजिल बनाए बैठा है ,
मुझको भी चाहिए अब
उसको बना लूँ मक़सद ॥
उसको बना लूँ मक़सद ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
1 comment:
बहुत बढ़िया!
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