*मुक्त-मुक्तक : 206 - जैसे कि दिल.............
जैसे कि दिल लगा के
किताबात तुम पढ़ो ,
किताबात तुम पढ़ो ,
कब मेरा हालेदिल मेरी
आँखों में पढ़ोगे ॥
आँखों में पढ़ोगे ॥
मेरे तो रोम रोम में
रग रग में बसे तुम ,
रग रग में बसे तुम ,
कब मुझको अपने दिल की
पनाहों में रखोगे ॥
पनाहों में रखोगे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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