89 : मुक्त-ग़ज़ल - मैं समझता था..............
मैं समझता था कि सच्चे
हैं ग़लत थे साले ॥
उसने लिक्खे थे जो ख़त
मुझको मोहब्बत वाले ॥
देखने में तो मसीहा की
तरह लगता था ,
काम करता था मगर सिर्फ़
सफ़ाहत वाले ॥
बात करता था हमेशा ही वो जीने वाली ,
दिल में रखकर के ख़यालात क़यामत वाले ॥
उसने तनख़्वाह दी आसान
सहज कामों की ,
काम लेकर के बड़े सख्त मशक़्क़त वाले ॥
जिसके लायक़ था वही ओहदा
उसने पाया ,
सारे क़ाबिल नहीं होते
हैं यों क़िस्मत वाले ॥
पहले तो बख़्श ही देते
थे ख़ता कैसे भी ,
आज दुनिया में कहाँ दोस्त
मुरव्वत वाले ?
अब जिरह पे वो जिरह मुझसे
किया करता है ,
उसमें तेवर न पनपते हों बग़ावत वाले ?
छुपके करता था , लिहाज अपना वो जब रखता था ,
अब तो आगे ही करे काम
नदामत वाले ॥
(सफ़ाहत=नीचता/कमीनापन
, नदामत=लज्जा)
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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