29. मुक्त-ग़ज़ल : पानी में रह के बैर.....
पानी में रह के बैर मगरमच्छ से लिया ॥
जीना था कई साल मगर सिर्फ़ कुछ जिया ॥
दुनिया में सबकी बात अदब से सुनी मगर,
जो दिल को ठीक-ठाक लगा बस वही किया ॥
अपना समझ के जब भी आँख मूंदकर यकीं,
जिसपे किया उसी ने बराबर दग़ा किया ॥
नाक़ामयाब हो गए कितने ही रफ़ूगर ,
चिथड़ों को मेरे उनके सिए न गया सिया ॥
टिंडों का काम हमने लौकियों से चलाया,
ग़र नीम ना मिली तो करेला ही खा लिया ॥
गंदा है फिर भी पानी है पीले यूँ थार में,
प्यासों ने वक़्त-वक़्त पे पेशाब तक पिया ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Comments