1. मुक्त-ग़ज़ल : कूदते फाँदते बंदर.....................
उचकते कूदते बन्दर सधी जब चाल चलते हैं II
मेरे जंगल के हाथी मेंढकों जैसे उछलते हैं II
हिमालय पे भी जब
राहत पसीने से नहीं मिलती ,
हथेली आग लेकर हम
मरुस्थल को निकलते हैं II
तुम्हारे हंस
बगुले जब लगायें लोट कालिख में ,
मेरे कौए बदन पे
गोरेपन की क्रीम मलते हैं II
जमाते हो तुम
आइसक्रीम को जब सुर्ख भट्टी में ,
मेरे बावर्ची
भजिये बर्फ के पानी में तलते हैं II
वो जब भी डूबने
लगते
हैं चुल्लू भर ही पानी में ,
बचाने को मेरे तैराक उसमें जा फिसलते हैं II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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