मत वही गुज़रे ज़माने याद कर रोया करो ॥
दौर जो चालू है उसके साथ में दौड़ा करो ॥
अपने सीधे सादेपन को इक तरफ फेंको कहीं ,
होशियारी चालबाज़ी के हुनर सीखा करो ॥
सच के कहने से अगर पड़ते हों लाले जान के ,
फिर तो बखुदा बेतअम्मुल झूठ ही बोला करो ॥
दिल को दहला पिघला दें ऐसे न मंजर देखिए ,
आँख को दिलकश नज़ारों पे ही अब रोका करो ॥
दुश्मनों से आप खूँ का खेल खुलकर खेलिए ,
पीठ में यारों की खंजर मत मगर घोंपा करो ॥
इस ज़माने में बनावट और दिखावा खास है ,
काटना चाहे न लेकिन ज़ोर से भौंका करो ॥
रँग रहे हैं गाँव भी तेज़ी से शहरी रंग में ,
तुम भी धोती छोड़ दो फुलपेंट ही पहना करो ॥
लीक पर तो सब ही चलते हैं अगर तुम हो अलग ,
बंजरों में फिर गुलों की इक फसल पैदा करो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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