मुझपे ज़ाहिर न कभी
क्यों ये अपनी ख़्वाहिश की ?
क्यों ये अपनी ख़्वाहिश की ?
हक़ से क्यों हुक़्म सुनाया
न क्यों गुज़ारिश की ?
न क्यों गुज़ारिश की ?
क्यों मेरी जान माँगने
में
शर्म आयी तुझे ?
शर्म आयी तुझे ?
क़त्ल की क्यों ऐ मेरी जान
तूने साज़िश की ?
तूने साज़िश की ?
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति